• Unleashing: The Power of Belief System Beyond Motivation

    Know Yourself: Beyond Motivation -Power of Belief System
    • Posted By : Admin
    • 2021-06-13
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    आज की बात – अपनी ताकत को कैसे पहचाने – हाँ हर व्यक्ति में बहुत कुछ करने की क्षमता होती है लेकिन वह सिर्फ उतना कर पाता जितना वह सोचता है कि मैं सिर्फ इतना ही कर पाउँगा – इस सोच के कई कारण हो सकते हैं | आपके के खुद के experience हो सकते हैं या आपको किसी ने बता दिया हो कि आप बस इतना ही कर सकते हो |

    इसके लिये मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ | हाथी का बच्चा जब छोटा होता है तो उसे जंजीर से एक बड़े पत्थर से बाँध के रखा जाता है | वह आपने आप को खूब आजाद कराने की कोशिश करता है लेकिन वह आजाद नहीं हो पाता | अब हाथी का बच्चा बड़ा हो जाता है लेकिन अब उसे साधारण रस्सी से बाँधा जाता है और बडे पत्थर की बजाय साधारण लकड़ी के खम्बे से बाँध दिया जाता है और अब वह पहले से अधिक बड़ा और ताकतवर हो चूका है अगर वह थोड़ी जोर से झटका मारे तो वह रस्सी और खम्बा दोनों टूट जायें लेकिन वह हाथी ऐसा नहीं कर पाता क्योंकि अब उसे ऐसा लगने लगता है की उससे नहीं हो पायेगा क्योंकि जब वह छोटा था तो वह उस काम को नहीं कर पाया था |

    बस ऐसे ही बचपन से ही हमारे दिमाग में बहुत सारी चीजें ऐसी बैठा दी जाती हैं कि ये तुमसे नहीं हो पायेगा | तुम ऐसा नहीं कर पाओगे etc. और हम भी वैसा ही मानने लगते हैं और उसको काम को करने का प्रयास भी नहीं करते |
    11 अप्रेल, 2011 राष्ट्रीय स्तर की वालीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा, पद्मावती एक्सप्रेस में लखनऊ से दिल्ली जा रही थी| बीच रास्ते में कुछ लुटेरों ने सोने की चेन छिनने का प्रयास किया, जिसमें कामयाब न होने पर उन्होंने अरुणिमा को ट्रेन से नीचे फेंक दिया|

    पास के ट्रैक पर आ रही दूसरी ट्रेन उनके बाएँ पैर के ऊपर से निकल गयी जिससे उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया| वे अपना बायाँ पैर खो चुकी थी और उनके दाएँ पैर में लोहे की छड़े डाली गयी थी| उनका चार महीने तक दिल्ली के आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) में इलाज चला|

    इस हादसे ने उन्हें लोगों की नज़रों में असहाय बना दिया था और वे खुद को असहाय नहीं देखना चाहती थी|

    क्रिकेटर युवराज सिंह से प्रेरित होकर उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोची ताकि वह फिर से आत्मविश्वास भरी सामान्य जिंदगी जी सके|

    अब उनके कृत्रिम पैर लगाया जा चुका था और अब उनके पास एक लक्ष्य था| वह लक्ष्य था दुनिया कि सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवेरेस्ट को फतह करना|

    एम्स से छुट्टी मिलते ही वे भारत की एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला पर्वतारोही “बिछेन्द्री पॉल” से मिलने चली गई| अरुणिमा ने पॉल की निगरानी में ट्रेनिंग शुरू की|

    कई मुसीबतें आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और धीरे धीरे पर्वतारोहण की ट्रेनिंग पूरी की|

    प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की| 52 दिनों की कठिन चढ़ाई के बाद आखिरकार उन्होंने

    21 मई 2013 को उन्होंने एवेरेस्ट फतह कर ली| एवेरस्ट फतह करने के साथ ही वे विश्व की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही बन गई|

    एवरेस्ट फतह करने के बाद भी वे रुकी नहीं| उन्होंने विश्व के सातों महाद्वीपों की सबसे ऊँची पर्वत चोटियों को फतह करने का लक्ष्य रखा|

    जिसमें से अब तक वे कई पर्वत चोटियों पर तिरंगा फहरा चुकी है और वे अपने इस लक्ष्य पर लगातार आगे बढ़ रही है|

    वे अपने इस महान प्रयासों के साथ साथ विकलांग बच्चों के लिए “शहीद चंद्रशेखर आजाद विकलांग खेल अकादमी” भी चलाती है|

    एक भयानक हादसे ने अरुणिमा की जिंदगी बदल दी| वे चाहती तो हार मानकर असहाय की जिंदगी जी सकती थी लेकिन उन्हें असहाय रहना मंजूर नहीं था| उनके हौसले और प्रयासों ने उन्हें फिर से एक नई जिंदगी दे दी|
    अरुणिमा जैसे लोग भारत की शान है और यही वो लोग है, जो नए भारत का निर्माण करने में एक नींव का काम कर रहे है| युवराज सिंह से प्रेरित होकर अरुणिमा ने अपनी जिंदगी बदल दी और अब अरुणिमा कहानी हजारों लोगों की जिंदगी बदल रही है|

    अरुणिमा की कहानी निराशा के अंधकार में प्रकाश की एक किरण के सामान है जो सम्पूर्ण अन्धकार को प्रकाश में बदल देती है|